दोमट पर पहली छिड़कन से !


सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।

रवि तप से सुलगी वसुधा, आज भस्म है नवयौवन से,
दोमट पर पहली छिड़कन से, कुछ जलने की बू छाई है।

बूँदों की परतों को छुआ जो, सुर्ख लाल तप्त अधरों ने,
पानी की शीतलता झुलसी, खुद अपनी जान गवाई है।

अम्बुद ने भेजा अचला को, धर खेद-पत्र बौछारों में,
जा टूट पड़ा अल्हड यौवन पर, खूब बनी टकराई है।

काली-घटा के रस में भीगी, प्रियतमा की हरित ओढ़नी,
हरे रंग का अचरज देख, हर वन-उपवन शाक लजाई है।

पुष्प-पुष्प दर भ्रमर भटके, आकर्षण की दुर्लभ चाह में,
सारे सुमन बगिया से चुन ले, वो मोह प्रिय ने पाई है।

दसो दिशा तमस में डूबी, बरस उठा नभ से अन्धकार,
माथे से चूनर ज्यूँ ढलकी, हट धवल चन्द्रिका लाई है।

दुबका दिन बदली से बोला, हाय !भूल से, बड़ी भूल हुई,
बिन पूछे शशि ने अपने सखा से, श्वेत आभा छिटकाई है।

मोर, पपीहे, कोयल गाये, सावन-भादौं गीत मल्हार,
गौरवर्ण स्वर गायन से,
क्यूँ कृष्ण-कोकिला शरमाई है।

गौरी ने जब सुर-संगम छेड़ा, वसु दंग अवतार देखते,
स्वर्ग त्याग माँ शारदा ने, क्यूँ वीणा भग्न बजाई है।

पग उठने लगे मद में , प्रकृति की ताल-ताल पर,
विश्व कलापी नर्तन बाला ने, उदक में धूम मचाई है।

झनक-झनक बिन पायल-घुंघरू, झनक उठी झंकार,
कदम-कदम का पड़ना देखो, नट नृत्य छवि सजाई है।

रज़त सरीकी चटक देह, कनक केश काँधे पर ठहरे,
अंग-अंग से आसव बरसे, झूल चटक कली चटकाई है।

पलको में मदिरा के प्याले, पांव चले के धुत्त शराबी,
सोचे अचंभा नशे-नशे में, मय, अभी-अभी ढुलाई है।

थक हार लौट कर हुई वापसी, दर्पण से आँखें चार करे,
काजल से एक बिंदिया ले, कह नज़र लगी उतराई है।

झट खुले नाग जूडे में कस लो, डस काले-काले काल हुए,
पिछली शरारत से मुकुर के माथे, फटी अभी बिवाई है।

दाग नहीं तो चाँद सी काया, वज्र मोहिनी सा गर्व करे,
कोमल तन में निर्मल मन, दर्प दोष की पूर्ण भरपाई है।

हृदय
पर एकमात्र आभूषण, जिसे लज्जा और शर्म कहे,
कुशल-सुघड़ इस स्वर्ण-सौन्दर्य में ,सागर सी गहराई है।

अंग-अंग की देख व्यवस्था, मन सयंम डामा-डोल हुआ,
उस पर फिसलन से भीगे आँचल ने और क़यामत ढाई है।

सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
*****

कुछ शब्दार्थ : स्वधा ,अम्बु =जल, आसव =मदिरा, मुकुर = दर्पण
* अगर किसी शब्द अथवा पंक्ति का अर्थ समझने में कोई समस्या है तो निसंकोच कहे, आपकी शंका समाधान में मुझे प्रसन्नता होगी :) कुछ कमी ही तो भी सूचित करे

जितना गाओ घिंसता जाये जीवन का धुंधला संगीत।

*****
जात-पात में धुलकर आयी ढोंगी जग की जीवन-रीत,
मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत।।

लाख करो हठ बंध ना पाये धन भंगुर का राग-मल्हार,
जितना गाओ घिंसता जाये जीवन का धुंधला संगीत।

कर्म से ओछेपन को ढक लो,गीली-मिट्टी गार सांधकर,
बौनेपन से ढक ना पाये, पौठे वाली, डग-मग भीत।

मेहनत करके पैसा खाया, वर्षो तप में तन जलाया,
कुल्ला करके भूखा रोये, सयंम से लगा धुन मीत।

कालचक्र की चकरी लुढ़के, बदले सुख-दुःख की रफ़्तार,
आँख भींचकर छींक दे भोगी, दुःख तो जाये आपही बीत।

मंदिर चढ़कर गला फकाड़े, नित-नित खाए शेर प्रसाद,
श्याम ढले घर, तंग अंगिया पे, टप-टप टपके नीत।

बेगानों के जहन में आये, सगे उधेड़े मखमली ओढ़नी,
पिता बना दुशासन चीर का, पल्ला पकडे आँचल गीत।

अश्व-असि से छांग-छांगकर भर लो सारे मुंड अजेय,
प्रेम की चुटकी, छुप के काटो, इस से बड़ी ना जीत।

घुटने,टखने,अंस मोड़कर, खूब बनी फुफकार कुंडली,
मानुष के छल-बल गुण से, शेषनाग भी है भयभीत।

गला काट के, कंठ को चूंसे, बिंगड़ा मनुजता का स्वाद,
नरक की पहली सीढ़ी मिली,या कलियुग का है शीत।

जात-पात में धुलकर आयी ढोंगी जग की जीवन-रीत,
मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत।।
*****



~}___________*****_____________{~
शब्दार्थ: भीत = दीवार,फकाड़े = धोना,अंगिया = चोली ।

Quick Notice