दोमट पर पहली छिड़कन से !
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
रवि तप से सुलगी वसुधा, आज भस्म है नवयौवन से,
दोमट पर पहली छिड़कन से, कुछ जलने की बू छाई है।
बूँदों की परतों को छुआ जो, सुर्ख लाल तप्त अधरों ने,
पानी की शीतलता झुलसी, खुद अपनी जान गवाई है।
अम्बुद ने भेजा अचला को, धर खेद-पत्र बौछारों में,
जा टूट पड़ा अल्हड यौवन पर, खूब बनी टकराई है।
काली-घटा के रस में भीगी, प्रियतमा की हरित ओढ़नी,
हरे रंग का अचरज देख, हर वन-उपवन शाक लजाई है।
पुष्प-पुष्प दर भ्रमर भटके, आकर्षण की दुर्लभ चाह में,
सारे सुमन बगिया से चुन ले, वो मोह प्रिय ने पाई है।
दसो दिशा तमस में डूबी, बरस उठा नभ से अन्धकार,
माथे से चूनर ज्यूँ ढलकी, हट धवल चन्द्रिका लाई है।
दुबका दिन बदली से बोला, हाय !भूल से, बड़ी भूल हुई,
बिन पूछे शशि ने अपने सखा से, श्वेत आभा छिटकाई है।
मोर, पपीहे, कोयल गाये, सावन-भादौं गीत मल्हार,
गौरवर्ण स्वर गायन से, क्यूँ कृष्ण-कोकिला शरमाई है।
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
रवि तप से सुलगी वसुधा, आज भस्म है नवयौवन से,
दोमट पर पहली छिड़कन से, कुछ जलने की बू छाई है।
बूँदों की परतों को छुआ जो, सुर्ख लाल तप्त अधरों ने,
पानी की शीतलता झुलसी, खुद अपनी जान गवाई है।
अम्बुद ने भेजा अचला को, धर खेद-पत्र बौछारों में,
जा टूट पड़ा अल्हड यौवन पर, खूब बनी टकराई है।
काली-घटा के रस में भीगी, प्रियतमा की हरित ओढ़नी,
हरे रंग का अचरज देख, हर वन-उपवन शाक लजाई है।
पुष्प-पुष्प दर भ्रमर भटके, आकर्षण की दुर्लभ चाह में,
सारे सुमन बगिया से चुन ले, वो मोह प्रिय ने पाई है।
दसो दिशा तमस में डूबी, बरस उठा नभ से अन्धकार,
माथे से चूनर ज्यूँ ढलकी, हट धवल चन्द्रिका लाई है।
दुबका दिन बदली से बोला, हाय !भूल से, बड़ी भूल हुई,
बिन पूछे शशि ने अपने सखा से, श्वेत आभा छिटकाई है।
मोर, पपीहे, कोयल गाये, सावन-भादौं गीत मल्हार,
गौरवर्ण स्वर गायन से, क्यूँ कृष्ण-कोकिला शरमाई है।
गौरी ने जब सुर-संगम छेड़ा, वसु दंग अवतार देखते,
स्वर्ग त्याग माँ शारदा ने, क्यूँ वीणा भग्न बजाई है।
पग उठने लगे मद में आ, प्रकृति की ताल-ताल पर,
विश्व कलापी नर्तन बाला ने, उदक में धूम मचाई है।
झनक-झनक बिन पायल-घुंघरू, झनक उठी झंकार,
कदम-कदम का पड़ना देखो, नट नृत्य छवि सजाई है।
रज़त सरीकी चटक देह, कनक केश काँधे पर ठहरे,
अंग-अंग से आसव बरसे, झूल चटक कली चटकाई है।
पलको में मदिरा के प्याले, पांव चले के धुत्त शराबी,
सोचे अचंभा नशे-नशे में, मय, अभी-अभी ढुलाई है।
थक हार लौट कर हुई वापसी, दर्पण से आँखें चार करे,
काजल से एक बिंदिया ले, कह नज़र लगी उतराई है।
झट खुले नाग जूडे में कस लो, डस काले-काले काल हुए,
पिछली शरारत से मुकुर के माथे, फटी अभी बिवाई है।
दाग नहीं तो चाँद सी काया, वज्र मोहिनी सा गर्व करे,
कोमल तन में निर्मल मन, दर्प दोष की पूर्ण भरपाई है।
हृदय पर एकमात्र आभूषण, जिसे लज्जा और शर्म कहे,
कुशल-सुघड़ इस स्वर्ण-सौन्दर्य में ,सागर सी गहराई है।
अंग-अंग की देख व्यवस्था, मन सयंम डामा-डोल हुआ,
उस पर फिसलन से भीगे आँचल ने और क़यामत ढाई है।
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
*****
कुछ शब्दार्थ : स्वधा ,अम्बु =जल, आसव =मदिरा, मुकुर = दर्पण
* अगर किसी शब्द अथवा पंक्ति का अर्थ समझने में कोई समस्या है तो निसंकोच कहे, आपकी शंका समाधान में मुझे प्रसन्नता होगी :) कुछ कमी ही तो भी सूचित करे
विषय-
गीत,
प्रेम,
मेरी कविताएँ
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121 } टिप्पणियाँ {comments} (+add yours?)
बहुत सुन्दर रचना, नित नयी बुलंदियों को छुते हुए, बहुत शुभकामना !
कुडि़यों से चिकने आपके गाल लाल हैं सर और भोली आपकी मूरत है http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/06/blog-post.html जूनियर ब्लोगर ऐसोसिएशन को बनने से पहले ही सेलीब्रेट करने की खुशी में नीशू तिवारी सर के दाहिने हाथ मिथिलेश दुबे सर को समर्पित कविता का आनंद लीजिए।
Bahut sundar kalpana shakti hai!Aur kuchh alfaaz nahi soojh rahe,so is waqt itnahi..!
प्रारम्भ तो बहुत सुन्दर हुआ था पर अंत तक आते आते कुछ विषय बदल सा गया.....प्रयास सराहनीय है
kya bat hai bhai ji waah...bahut sundar
संगीता जी ...शुरू से अंत तक नायिका पर बारिश से हुए प्रभाव, जल, कुछ प्रकृति से तुलना , और नायिका के शारीरिक और मनरूपी सौन्दर्य का चित्रण किया है .....विषय यही है....आपको कहाँ परिवर्तन लगा .....थोड़ा स्पष्ट करके बताये ....मुझे प्रतीक्षा है .....!
मानसून का इंतज़ार इतना रस भरा है तो जब मानसून आ जाएगा तो क्या होगा
सुन्दर रचना
राजेन्द्र,
"हिरदय पर एकमात्र आभूषण, जिसे लज्जा और शर्म कहे,
कुशल-सुघड़ इस स्वर्ण-सौन्दर्य में ,सागर सी गहराई है।
अंग-अंग की देख व्यवस्था, मन सयंम डामा-डोल हुआ,
उस पर फिसलन से भीगे आँचल ने और क़यामत ढाई है।
सावन की रिम-झिंम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।"
ताप और बढ़ा दिया है यार, तुमने।
badhai rajendra, iss umra mey itani paripakvata..? kya baat hai... isee tarah rachate raho. chhand ko bachanaa zaroori hai. poori rachanaa achchhi hai. dheere-dheere aur nikhar bhi aayega. shubhkamanaye.
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
आपकी टिपण्णी और हौसला अफ़जाही के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
मनमोहक तस्वीर के साथ बेहद ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! हर एक शब्द में इतनी गहराई है जो दिल को छू गयी! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ की जाए कम है! लाजवाब प्रस्तुती!
कविता और तस्वीर का सामंजस्य देखते बन रहा है...
कल्पना को साकार करती कविता...
बधाई....
हृदय पर एकमात्र आभूषण, जिसे लज्जा और शर्म कहे,कुशल-सुघड़ इस स्वर्ण-सौन्दर्य में ,सागर सी गहराई है...बहुत सुंदर !!! आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. धन्यवाद .
बहुत सुंदर भाव |बधाई
आशा
सुन्दर!
हृदय पर एकमात्र आभूषण, जिसे लज्जा और शर्म कहे,
कुशल-सुघड़ इस स्वर्ण-सौन्दर्य में ,सागर सी गहराई है।
"लज्जा और शर्म"
Yeh hee hum Bharteya logon ka asalee Abhushan hai.
Hardeep
आच्छी रचना!
बेहतरीन...."
अब समझ में आया दर्द और दुःख सह कर जीना ही जीवन की सही परिभाषा है ....बस अब जिन्दगी की चारपाई इन चार पायो पर टिकी है ..शराब ,संगीत ,लेखन और यादें- .एक भी पाया टूटा ...
bas bhi karo bhai.... charpaaiii se niche utar kar dekho...
dharti nam hai aapke aansuon se....
vaise ye PRIYA kaun hai?? ;)
बहुत बहुत - सुन्दर रचना है .प्रकृति और सौन्दर्य का अद्दभुत चित्रण किया है सभी छंद लाजबाब तारीफ़ मुमकिन नहीं
बहुत सुन्दर रचना है , गिरीश पंकज जी ने ठीक कहा है इस उम्र में इतनी परिपक्वता, आपके सुखद भविष्य की शुभ कामना के साथ - राघवेन्द्र सिंह चौहान
@मनीष , कोई नहीं बस एक कल्पना है, और आपके स्नेह के लिए धन्यवाद
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
bahut achha laga pad kar bahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
shbdo ka chayan bahut sundar
waah bhaiya waah...maansoon abhi pahuncha nahi ki ye baatein nikal rahi hai..jab pahunchega to to bavaal hi kar doge...bahut sundar....ek baat aur Rajendra bhai....shabdon ke khel me to maharat haasil ho hi gayi hai...ab lay aur taal par bhi haath saaf kar hi do...kuch geet bhi banao...fir utube pe sunao.....intzaar hai...
आप सभी मित्रों का आभार ...@दिलीप भाई .. तारीफ़ के लिए शुक्रिया,,, बस लय,ताल,सुर और संगीत का थोड़ा ज्ञान हो जाए फिर गायन की भी कोशिश करंगे, अभी क्लासिकल सीखने का विचार है .फिलहाल लिखने में ही आनंद रहा है ...धन्यवाद
सुन्दर!
घुघूती बासूती
bahut khubsurat shabd diye hain bhai aapne :)
thanx for your comment on my blog..
bahut khubsurat kavita ki rachna ki hai aapne...bahut khub.
http://halchalekit.blogspot.com/
kabhi is blog per visit kare.(my room partner blog)
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।.....बहुत सुन्दर रचना
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर पहुचीं हूँ पढकर आनंद आया, बारिश के पहले ही भिगो दिया आपने .
dhnyvaad mitro apne vichar dene ke liye
वाह! घणोई सुवाद आयो थारा ब्लाग पै आयके।
आज पैली बार आया फ़ेर आता रहसां।
राम राम
bahut khubsurat shabd diye hain aapne
Rajender ji
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
पलको में मदिरा के प्याले, पांव चले के धुत्त शराबी,
सोचे अचंभा नशे-नशे में, मय, अभी-अभी ढुलाई है ...
मनमोहक .. सुंदर गीत है ... सावन के रंग में रची मनभावन रचना ....
राजेंद्र; बड़ा ही जोरदार प्रेम काव्य रच दिया आपने तो. जबरदस्त प्रवाह है. पढ़कर चारों ओर घटाएं छा गई हो ऐसा प्रतीत हो रहा है. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर काव्य-रचना के लिए.
सावन की रिम-झिंम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।"
.....बहुत सुन्दर रचना
हृदय पर एकमात्र आभूषण, जिसे लज्जा और शर्म कहे,
कुशल-सुघड़ इस स्वर्ण-सौन्दर्य में ,सागर सी गहराई है।
अंग-अंग की देख व्यवस्था, मन सयंम डामा-डोल हुआ,
उस पर फिसलन से भीगे आँचल ने और क़यामत ढाई है।
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
_______________________________________________
अत्यंत सुन्दर रचना ! आभार !
रचना प्रशंसनीय ।
रचना लिखो . उसे बार बार पढो . अपने आप प्रवाह एवं शब्द विन्यास सुगठित हो जाएगा ।
@ अरुणेश जी , सुझाव के लिए धन्यवाद ,,विचार करूँगा... मैं भी रचना में गीत जैसा प्रवाह लाने की लिए कई बार पढता हूँ .. !!! फिर भी आपका सुझाव अच्छा लगा ,,,मार्गदर्शन करते रहे !
सुन्दर रचना ...
दुबका दिन बदली से बोला, हाय !भूल से, बड़ी भूल हुई,
बिन पूछे शशि ने अपने सखा से, श्वेत आभा छिटकाई है।
kuch samgh nahi aaya bhai toda explain kare
आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !
आचार्य जी
'दुबका दिन बदली से बोला, हाय !भूल से, बड़ी भूल हुई,
बिन पूछे शशि ने अपने सखा से, श्वेत आभा छिटकाई है।'
@ कपिल : पिछली पंक्ति में बताया है बरसात के अन्धकार में दिन छुप सा गया है , जैसे ही नायिका ने चहरे से चुनर हटाई ऐसा लगा मानो चांदनी बिखर गयी हो ,,इस लिए ही यहाँ कहा गया हैं की कहीं ऐसा तो नहीं की आज चाँद अपने मित्र सूरज से बिना पूछे तो नहीं निकल आया क्यूँकी और दिन सूरज छिपने के बाद ही चांदनी निकलती थी, शायद चाँद से भूल हो गयी हो ,,,,,आशा है आप समझ चुके होंगे अगर अभी भी कोई शंका है तो निसंकोच कहे ,,,,मुझे समाधान में प्रसन्नता होगी
बहुत सुन्दर व सरस रचना है।पढ़ कर आनंद आ गया। धन्यवाद।
भाई शब्दों की ऐसी बारिश और जो सुन्दर दृश्य खींचा है.. क्या कहने!
रचना के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर है.
कुछ शेरों में तो आपने सचमुच क़यामत ढाई है।
bahut hi sundar aur sashakt rachna.
सुंदर रचना... नए शब्द विन्यास ... नए छंद... बधाई
हिन्दी केवल भाषा ही नहीं अपितु राष्ट्र की आत्मा है : अत्यंत सुन्दर रचना ! आभार !
थक हार लौट कर हुई वापसी, दर्पण से आँखें चार करे,
काजल से एक बिंदिया ले, कह नज़र लगी उतराई है।
bahut achchee panktiyaan ..yoon hee likhte rahein
आपका धन्यवाद !!!
बहुत ही मखमली
और खूबसूरत रचना लिखी है आपने तो!
बहुत-बहुत बधाई!
आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
आचार्य जी
bahut sunder rachna likhi aapne. bahut mahnat ki hai.
yun to pahle hi bahut kuch kaha ja chuka hai rachna ke bre m fir bhi isliye kuch kahne ki gunjaish to nahi hai fir bhi jo man m khayal aaya hai use kah deta hun .............
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
ye pankti bahut hi sundar or kashish bhari hai laybaddhta bahut acchi hai ismein
or shabdon ka bahut accha priyog kiya hai apne
alankrit or ras ka accha samayojan hai bhaav bahut sundar or prabhavi hai ....kuch lay toot rahi hai biich biich mein aap chaho to iska or sringaar kar sakte ho yakinan ..
bahut hi sundar rachna hai .
Rajendra Ji.....pahli bar aapke blog par pahucha hu or kuch kavitaye padi hai....mujhe sabse jyada khushi hui ki aapka blog HINDI me hai.....hindi ko itna samman dene ke liye dhanyvaad. Mai bhi kuch sadakchap shayar hu lekin mere pas abhi jo rachnaaye hai vo aapke blog ke layak nahi hai. Kuch iske layak likh kar aapko bhejuga,......
आईये जानें .... मैं कौन हूं!
आचार्य जी
थोडा सरल शब्दों का प्रयोग करो भई,हम लोग अनपढ़ हैं ,शब्दकोष भी नहीं है घर में
Fotu badiya kavita 50%
thoda samajhne mein waqt laga....;)
par bahut achi kavita hai...really...awesome :)
कबिता पढकर लगा कि आप एक दम सराबोर कर दिए हैं बरसात में अऊर श्रिंगार रस में..लेकिन कहीं कहीं कबिता मीटर यानि इस्केल से बाहर निकल रहा है... जो भी है, पहिला बार आकर मजा आ गया..आते रहेंगे..
Rajendra Bhai....kuch nahi kahunga.
Vakt milte hi....isko phir se paduga.
Really nice...dost. Thanks.
Very good!
vivj2000.blogspot.com
क्या कहने। क्या कहने। जनाब। बहुत खूब।
जितनी अच्छी कविता लिखी है,
उसी से तो इतनी टिप्पणी आई है।
शानदार और जानदार कविता के लिए बधाई स्वीकार करें।
http://udbhavna.blogspot.com/
jai shri krishna..bht hi pyari aur khubsurat kavita likhih ain aapne...man aur tan dono ko bhigo dene wali....ek rang se jise shayad pyar ka rang kahate hain
हमें ये शेर लूट ले गया......
स्वधा की परतों को छुआ जो, सुर्ख लाल तप्त अधरों ने,
अम्बु की शीतलता झुलसी, खुद अपनी जान गवाई है।
क्या क्लासिकल लिखा है......!
काली-घटा के रस में भीगी, प्रियतमा की हरित ओढ़नी,
हरे रंग का अचरज देख, हर वन-उपवन शाक लजाई है।
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
सुभानाल्लाह ....!!
वैसे भी इस तस्वीर खूब भारी पड़ रही है इस शे'र पर ......!!
"सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।"
देर से आया लेकिन दुरुस्त आया - गाने लायक लाजवाब रचना - वाह वाह.
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना इस अनुपम प्रस्तुति के लिये बधाई, आपकी लेखनी यूं ही दिनों दिन नई ऊंचाईयां चढ़ती रहे ।
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
लाजवाब रचना ..
meena ji meri kavita un logo ke liye hain do dosti ke naam pe apvaad hain |
apne shbdo ki is nirali chta ko banaye rakhiye .
sundar bhav
काली-घटा के रस में भीगी, प्रियतमा की हरित ओढ़नी,
हरे रंग का अचरज देख, हर वन-उपवन शाक लजाई है।.....barish ka aisa anokha chitran.... adbhut....
राजेन्द्र ज़ी
अति सुन्दर शृंगार रस से ओत प्रोत भवाभिव्यक्ति।
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना इस अनुपम प्रस्तुति के लिये बधाई, आपकी लेखनी यूं ही दिनों दिन नई ऊंचाईयां चढ़ती रहे ।
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
Maaf kijiyga kai dino bahar hone ke kaaran blog par nahi aa skaa
वाह...मन रिमझिम-रिमझिम हो गया
bheege mausam ki bheegi baaten
BAHUT ACHHAI RACHANA HAI AUR LIKHATE RHE
aapse shikaya h itne dino tak kaha the lakin shuruaat main hi sab shikyat dur kar di aapne bhai salam aapke hatho ko
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
is line ne aapki koi purni yad taza kar di hamre sath bhai
आपने इतना ख़ूबसूरत रचना लिखा है कि आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! इस उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
राजेन्द्र भाई, इस गजल के बहाने आपने बहुत प्यारी आग लगाई है।
इसलिए आपके ब्लॉग पे इतने शानदार टिप्पणियाँ आई हैं।
…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
राजेन्द्र जी आपके ब्लॉग की तरह आपकी अभिव्यक्ति की क्षमता भी अथाह है.
पानी की शीतलता झुलसी, खुद अपनी जान गवाई है।
एक एक शब्द की अपनी सुन्दरता है ..........बहुत खूब लिखा है तुमने
मेरा ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए शुक्रिया राजेन्द्र
एक ईमानदार प्रयास।
लिखते रहो, पढ़ते रहो, सुनते रहो, गुनते रहो
और आगे बढ़ते रहो।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
bahut achhe se abhivyakt kiya gaya hai...
Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .
वाह मीणा जी आपकी वीणा की झंकार से तो रोम रोम पुलकित हो उठा है...........
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
सावन की रिमझिम बरखा ने, बिजली कोई गिराई है,
जल की बूंद पड़ी उस तन पर, आँच यहाँ तक आई है।
..बहुत खूब.
mere dost ROHIT SHARMA(GANGAPUR CITY) n sujhaw diya aapki rachnao ko pdhne ka,dusri baar aana hua,rachnaye pdhne m sukun milta hai,main bhi koshish kar raha hoon kuch likhne ki,shayad aap jaisa na likh paau,fir bhi koshish karunga,milte rahenge,tb tk k liye alvidaa
kuch likhne ki koshish ki hai,aapse hi likhne ki prerna mili,so aapko hi pahle pdhne ka nyota de raha hoon....sujhaaw saadar aamantrit,,,sahyog ki apeksha mein BHARAT CHARAN nadaan ummidien ki taraf se.,.,.,
bahoot hi achchha laga aapka ye pyayash. itne lambi kavita ke liye mehnat to bahoot karni padi hogi.
रवि तप से सुलगी वसुधा, आज भस्म है नवयौवन से,
दोमट पर पहली छिड़कन से, कुछ जलने की बू छाई है।
....Bahut sundar kalpna...badhai..
http://sharmakailashc.blogspot.com/
ब्लॉग जगत के सुधि एवं विद्वान लेखकों/रचनाकारों को मेरा अभिनन्दन!
प्रस्तुत है मेरा नया ब्लौग- (jeevanparichay.blogspot.com )ये ब्लॉग आपका है और आपके लिए है.वर्तमान समय में हमारा आप का प्रोफाइल अपने ब्लॉग पर दिखता तो है किन्तु हम एक दूसरे के बारे में विस्तार से नहीं जान पाते.इन्टरनेट पर अभी तक कोई ऐसा ब्लॉग नहीं हैं जिस पर ब्लौग लेखकों का कोई प्रमाणिक जीवन परिचय उपलब्ध हो.अगर आप ब्लौग लिखते हैं तो अपना विस्तृत जीवन परिचय इस ब्लौग पर उपलब्ध करा सकते हैं.प्रक्रिया बहुत ही आसान है-
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(४)Message body में अपना जीवन परिचय (बिना संबोधन सूचक शब्दों के)हिंदी या अंग्रेजी में टाइप करें फॉण्ट साइज़ large रखें।
(५)और सेंड कर दें।
आपका जीवन परिचय इस ब्लॉग पर तत्काल प्रकाशित हो जायेगा.भविष्य में किसी प्रकार की एडिटिंग करने हेतु आप इस ब्लॉग के प्रोफाइल में दिए गए id पर मेल कर सकते हैं।कृपया इस ब्लौग के बारे में अपने साथी ब्लौगर मित्रों को भी बताने का कष्ट करें.
धन्यवाद!
lagta hai ki jaise is kavita ne saat suron ke sangam samahit ho gaye hai.bahut hi umda rachna
aapki lekhani kammal ki hai.
poonam
राजेन्द्र मीणा जी बहुत ही सुन्दर रचना, मेरे ब्लॉग पर आने का बहुत बहुत शुक्रिया !
sundar abhivyakti!
subhkamnayen:)
सुन्दर प्रस्तुति...शुभकामनाएं। !
हृदय पर एकमात्र आभूषण, जिसे लज्जा और शर्म कहे,
कुशल-सुघड़ इस स्वर्ण-सौन्दर्य में ,सागर सी गहराई है
बहुत सुंदर पंक्तियां हैं... आपके ब्लॉग पर बहली बार आई हूं। बहुत अच्छा रचनाएं है..कई पढ़ीं..बहुत अच्छा लिखते हैं आप..आगे भी लिखते रहिए
I appreciate your lovely post, happy blogging!
सुन्दर शब्द संयोजन एवं बहुत सुन्दर रचना
apki partibha gazab ki hai, itna achcha likhte ho. keep it up...
great work.keep it up.
लेखन के लिये “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।
जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव जीते हैं, लेकिन इस समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये मानव जीवन ही अभिशाप बन जाता है। अपना घर जेल से भी बुरी जगह बन जाता है। जिसके चलते अनेक लोग मजबूर होकर अपराधी भी बन जाते है। मैंने ऐसे लोगों को अपराधी बनते देखा है। मैंने अपराधी नहीं बनने का मार्ग चुना। मेरा निर्णय कितना सही या गलत था, ये तो पाठकों को तय करना है, लेकिन जो कुछ मैं पिछले तीन दशक से आज तक झेलता रहा हूँ, सह रहा हूँ और सहते रहने को विवश हूँ। उसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह आप अर्थात समाज को तय करना है!
मैं यह जरूर जनता हूँ कि जब तक मुझ जैसे परिस्थितियों में फंसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, समाज के हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यह भी एक बडा कारण है।
भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस प्रकार के षडयन्त्र का कभी भी शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल कुछ मिनट का समय हो तो कृपया मुझ "उम्र-कैदी" का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आपके अनुभवों/विचारों से मुझे कोई दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये! लेकिन मुझे दया या रहम या दिखावटी सहानुभूति की जरूरत नहीं है।
थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालों का आभारी रहूँगा।
http://umraquaidi.blogspot.com/
उक्त ब्लॉग पर आपकी एक सार्थक व मार्गदर्शक टिप्पणी की उम्मीद के साथ-आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”
kahan chle gaye bhai
waah.. bahut khoob.. :)
अच्छी रचना , बधाई आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ......
कभी हमारे ब्लॉग पर भी आए //shiva12877.blogspot.com
sunder bhawon aur sunder shabdon ka mail.
बहुत ही खूबसूरत रचना.....भाव भी खूब और शब्दों का संयोजन भी....
बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
सुंदर रचना
http://shayaridays.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना , बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक
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