जितना गाओ घिंसता जाये जीवन का धुंधला संगीत।

*****
जात-पात में धुलकर आयी ढोंगी जग की जीवन-रीत,
मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत।।

लाख करो हठ बंध ना पाये धन भंगुर का राग-मल्हार,
जितना गाओ घिंसता जाये जीवन का धुंधला संगीत।

कर्म से ओछेपन को ढक लो,गीली-मिट्टी गार सांधकर,
बौनेपन से ढक ना पाये, पौठे वाली, डग-मग भीत।

मेहनत करके पैसा खाया, वर्षो तप में तन जलाया,
कुल्ला करके भूखा रोये, सयंम से लगा धुन मीत।

कालचक्र की चकरी लुढ़के, बदले सुख-दुःख की रफ़्तार,
आँख भींचकर छींक दे भोगी, दुःख तो जाये आपही बीत।

मंदिर चढ़कर गला फकाड़े, नित-नित खाए शेर प्रसाद,
श्याम ढले घर, तंग अंगिया पे, टप-टप टपके नीत।

बेगानों के जहन में आये, सगे उधेड़े मखमली ओढ़नी,
पिता बना दुशासन चीर का, पल्ला पकडे आँचल गीत।

अश्व-असि से छांग-छांगकर भर लो सारे मुंड अजेय,
प्रेम की चुटकी, छुप के काटो, इस से बड़ी ना जीत।

घुटने,टखने,अंस मोड़कर, खूब बनी फुफकार कुंडली,
मानुष के छल-बल गुण से, शेषनाग भी है भयभीत।

गला काट के, कंठ को चूंसे, बिंगड़ा मनुजता का स्वाद,
नरक की पहली सीढ़ी मिली,या कलियुग का है शीत।

जात-पात में धुलकर आयी ढोंगी जग की जीवन-रीत,
मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत।।
*****



~}___________*****_____________{~
शब्दार्थ: भीत = दीवार,फकाड़े = धोना,अंगिया = चोली ।

61 } टिप्पणियाँ {comments} (+add yours?)

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Umda rachnaa hai !

शिवम् मिश्रा said...

बहुत उम्दा रचना |

संजय @ मो सम कौन... said...

राजेन्द्र भाई,
कैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब? अच्छा, वो पाये जो प्रोफ़ाईल में लिखे हैं, उनकी मदद से। हमारे पास तो उनमें से एक ही पाया है, यादों का।
और प्यारे तुम्हारी गली के चक्कर हम पहले से ही काट रहे हैं, यकीन न हो तो ’पीछा करो’ वाली लिस्ट में देख लो।
जमेगी या उखड़ेगी, देखी जायेगी। दोस्ती होने के बाद अपन परवाह नहीं करते हैं।
जियो राजा, आज दिल लूट लिया है अपनी लेखनी से। हा हा हा

अनामिका की सदायें ...... said...

tareef k liye shabd nahi he vo jinse tumhari kavita ka shrangaar karu. badhayi.

Ra said...

संजय भाई ,,,दावे से कहता हूँ दोनों की ऐसी जमेगी ...की दुनिया मिसाल देगी

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से जज़्बात अभिव्यक्त किये हैं...

Renu goel said...

is umr me itne achche dohe likhna aapne kahan se seekha...kamaal karte ho ...

प्रसून दीक्षित 'अंकुर' said...

अत्यंत सुन्दर रचना !

Ra said...

पुखराज जी ,,,कुछ आपका कुछ सभी ब्लोगर साथियों,,,और बाकी सरस्वती माँ का आशीर्वाद है,,बस ऐसे ही स्नेह देते रहिये

सुल्तान एस. said...

आज तो गज़ब का झटका दिया है ,,सुबह एक धधकती रचना और अब ये गागर में सागर वर्ड नहीं है मेरे पास जो कुछ कह सकूँ स्टार्ट से एंड तक सब कुछ जोरदार सब सारा साहत्य समटे है ये अकेली रचना

सुल्तान एस. said...

अति अति अति सुन्दर रचना

कडुवासच said...

...अदभुत ... प्रसंशनीय !!!

nilesh mathur said...

राजेंद्र भाई, आपकी फोटो और ब्लॉग का नया रूप अच्छा लगा!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

लिखते बहुत अच्छा हो... वह जो पहला पाया है, वह आपके बारे में जो लिखा है, अभी तक दिखाई दे रहा है.. जब मुंहलगी हट गई तो यहां क्यों?

naren said...

welldone raju bhai

anu said...

ab tak achha likhte the aaj to kamal kar diya dil jeet liya

स्वप्न मञ्जूषा said...

हे भगवान्...!!
ई हम का देख रहे हैं...!!
चटाक भर के छुटकू और बात पसेरी भर...
हम तो बहुते फलाट हो गए हैं...
तारीफ़ करना मुहाल हो गया है....
अब ऐसा है...जितने लोग ईहाँ पर तारीफ़ कर गए हैं ...उन सबको जोड़ो फिर उसको उसी से गुना करो ...और फिर जो आता है..उ हमरी तरफ से रखो....
कैसी रही....?
हाँ नहीं तो...!!!

Ra said...

खूब रही अदा जी

manu said...

सबसे बड़ा है 'मनु' फिर धर्म,और सबसे छोटी है 'मनप्रीत'..
'मन' की 'प्रीत' न सच्ची हो तो , कैसे बड़ी कहूं 'मनप्रीत'

अभी ये मत पूछना कि ये मनप्रीत कौन है...?

Shekhar Kumawat said...

wow rajendra ji gajab he aap ka ye bom

manu said...

ek baat aur..

aapki photo bahut pasand aayi....

kshama said...

जात-पात में धुलकर आयी ढोंगी जग की जीवन-रीत,
मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत।।
Kaash ham yah samajh payen..apne jeevan me utaar payen..dhong rachate rahte hain..umr bhar..!

Anonymous said...

bahut khub dohe likhein hain dost,........
achha laga padhkar........

संजय भास्‍कर said...

राजेन्द्र भाई,
कैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब..........

संजय भास्‍कर said...

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

Ra said...

ये सब आपका और सभी दोस्तों का स्नेह और आशीष है

मीनाक्षी said...

मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत।।--- मन को भा गई यह पंक्तियाँ ...

निर्झर'नीर said...

bhai rachna par pahle hi itni khoobsurat baten kahi ja chuki hai ,,,,,,ab m kya kahun inhi shabdon mein mere bhaav bhi shamil samajhiye

haa ek baat hai ki aapne acche shabdon ka priyog kiya hai

कालचक्र की चकरी लुढ़के, बदले सुख-दुःख की रफ़्तार,
आँख भींचकर छींक दे भोगी, दुःख तो जाये आपही बीत।

sanjay meena said...

kya baat hai meenA yar maja aa gya.

सदा said...

मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत ।
हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई, बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

रश्मि प्रभा... said...

कर्म से ओछेपन को ढक लो,गीली-मिट्टी गार सांधकर,
बौनेपन से ढक ना पाये, पौठे वाली, डग-मग भीत।
bahut hi badhiyaa

Anonymous said...

जात-पात में धुलकर आयी ढोंगी जग की जीवन-रीत,
मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत।।
..
कर्म से ओछेपन को ढक लो,गीली-मिट्टी गार सांधकर,
बौनेपन से ढक ना पाये, पौठे वाली, डग-मग भीत।
सबके मन की बहुत बड़ी बात - जियो राजिंदर - जबरदस्त रचना

Ra said...

आप सभी का हार्दिक आभार

माधव( Madhav) said...

thanx for commenting on my Blog

vandana gupta said...

gazab ki rachna hai.........bahut hi gahre bhav bhare hain.

abhi said...

क्या गहराई से लिखते हो यार आप...बहुत अच्छा

Avinash Chandra said...

घुटने,टखने,अंस मोड़कर, खूब बनी फुफकार कुंडली,
मानव के छल-बल गुण से, शेषनाग भी है भयभीत।

behad shaandaar......bahut se jyada khubsurat hai bhai
likhte rahein

Ra said...

आप सभी का हार्दिक आभार

दिलीप said...

aapki tareef kya karein chaliye koshish karte hain kavita ki areef karne ki....aisa laga kahin blog hi jalkar raakh ho jaaye...kahin dikha sach kahin seekh hai...kahin sawaalon ki bauchaar...atulneey ik kavy banaya, kalam tumhari gayi hai jeet...

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी कविता, आप का धन्यवाद

मिलकर रहिए said...

मेरे नए ब्‍लोग पर मेरी नई कविता शरीर के उभार पर तेरी आंख http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html और पोस्‍ट पर दीजिए सर, अपनी प्रतिक्रिया। मैंने आपको पता नहीं कहां कहां पर ढूंढा पर अब आकर है आपका पता मिला।

योगेन्द्र मौदगिल said...

घुटने,टखने,अंस मोड़कर, खूब बनी फुफकार कुंडली,
मानव के छल-बल गुण से, शेषनाग भी है भयभीत।

behtreen....
saadhuwad..

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब .. इन दोहों के अंदाज़ में लिखी आपकी रचना लाजवाब है ...

पापा जी said...

पुत्र
तू बहुत होनहार है
ब्लागवुड में तेरे पैर जमते जा रहे हैं
तू जल्द ही किसी स्थापित ब्लागर को पछाड कर आगे निकलने वाला है
पापा जी

अरुणेश मिश्र said...

अति प्रशंसनीय ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जात-पात में धुलकर आयी ढोंगी जग की जीवन-रीत,
मनु बड़ा या धर्म बड़ा, या सब से बड़ी मन प्रीत।

दोहावली जैसी रचना बहुत सुन्दर बन पड़ी है!

RAJNISH PARIHAR said...

क्या गहराई से लिखते हो भाई, बहुत अच्छा!!!

दीपक 'मशाल' said...

क्या-क्या सोच लेते हो राजेंदर भाई... बाकायदा सच्चाइयाँ नज़र आ रही हैं..

Ra said...

आप सभी का हार्दिक आभार

लल्लन की कलम से said...

इस रचना को पढ़ कर धन्य हुए हम.

Sajal Ehsaas said...

कर्म से ओछेपन को ढक लो,गीली-मिट्टी गार सांधकर,
बौनेपन से ढक ना पाये, पौठे वाली, डग-मग भीत।

iska matlab kuch theek se samajh nahi aaya...kripaya samjhaa de..shukriyaa

Ra said...

इसका आशय है की 'युवा मनुष्य कर्म से अपनी कमियाँ दूर कर सकता है...श्रम करते हुए ,,,,,परन्तु प्रकृति द्वारा दिया हुआ रूप ( शिशु ) अपने स्यंव का भी कार्य ( आवश्यक कार्य ..मल त्याग जैसे भी स्यंव नहीं कर सकता ) नहीं कर सकता ....मतलब ...आज हम युवा है अपनी बचपन का क़र्ज़ चुका सकते है ..परिश्रम से .....भावार्थ में आपको असुविधा हो सकती है सीधा अर्थ देखे जो शब्द क्रम से ही बताया है

*कर्म से = कार्य से


*ओछेपन को ढक लो = किसी भी प्रकार की कमी दूर कर लो ..शारीरिक अथवा मानसिक ( मंदबुद्दी होना, अधिक क्रोध, भय, ..तथा अन्य सभी )


*गीली मिटटी-गार सांध कर = श्रम करके , जिसमे बाहरी रंग रूप के गंदे होने का ख्याल ना रखे ..कोई भी छोटा -बड़ा कार्य


*बौनेपन से = शिशु अवस्था जो प्रकृति प्रद्दत है


* ढक ना पाए = छुपा ना सके


*पौठे वाली भीत = घर की ( पिछली या बगल की ) दीवार --( शरीर के छुपाने योग्य अंग )
डग मग = शिशु अवस्था हिलता-डुलता आधार

आशा है आप समझ चुके होंगे अगर अभी भी कोई शंका है ...बिना किसी संकोच अथवा झिझक के कहे ....आपकी समस्या दूर करने में मुझे ख़ुशी होगी :)

हास्यफुहार said...

अत्यंत सुन्दर रचना !

Asha Lata Saxena said...

प्रभावशाली रचना के लिए बधाई |
आशा

आचार्य उदय said...

आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी

रंजू भाटिया said...

bahut khub ..bahut hi badhiya likha hai aapne

Anonymous said...

बहुत बढिया रचना है।बधाई।

संजय भास्‍कर said...

हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई, बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

डॉ० डंडा लखनवी said...

प्रकॄति चित्रण के माध्यम से मनमोहक सर्जना की है।
बधाई....स्वीकारें
-डा0 डंडा लखनवी

Unknown said...

kabhi kabhi mere dil main khyal aata haiiii kiii

kuch nahi aata jo aata hai tere dil main aata haiii

accha likha hai bahut.....

महेन्‍द्र वर्मा said...

सुंदर भावों से परिपूर्ण एक सुंदर रचना...बधाई।

Post a Comment

Quick Notice